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यूरोपीय संघ में हर डिवाइस के लिए एक जैसा चार्जर जल्द

८ जून २०२२

यूरोप में अब चार्जर के लिए परेशान होने के दिन बीतने वाले हैं. जल्द ही वहां हर डिवाइस के लिए एक जैसा चार्जर उपलब्ध होगा. इस बात पर अस्थायी सहमति बन गई है, जिसे औपचारिक मंजूरी जल्द मिल जाएगी.

सबके लिए एक चार्जर
सबके लिए एक चार्जरतस्वीर: Mohssen Assanimoghaddam/dpa/picture alliance

यूरोपीय संघ में इस बात पर सहमति बन गई है कि 2024 से सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस एक जैसा चार्जर इस्तेमाल करेंगी. यह यूएसबी-सी चार्जर होगा, जो फिलहाल एप्पल और गूगल समेत कुछ नए मॉडल के लिए ही उपबल्ध है.

यूरोपीय संघ में फिलहाल यह सहमति अस्थायी है और इसे औपचारिक अनुमति मिलनी बाकी है. इसके लिए प्रस्ताव को यूरोपीय संसद और मंत्री परिषद के समक्ष पेश किया जाएगा. ऐसा गर्मियों की छुट्टियों के बाद ही हो पाएगा, जब ये दोबारा बैठक करेंगे. तब इन प्रस्तावों को औपचारिक मंजूरी दी जाएगी और प्रकाशित किया जाएगा.

कंपनियों पर असर

इस फैसले का इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने वाली कंपनियों पर बड़ा असर होगा क्योंकि उन्हें अपने उपकरणों में बदलाव करने होंगे. एप्पल के उत्पाद जैसे आईफोन, आईपैड आदि को अपने चार्जिंग पोर्ट बदलन होंगे. मैक सीरीज के कुछ लैपटॉप पहले से ही यूएसबी-सी चार्जर से युक्त हैं.

यूरोपीय संघ का यह फैसला मौजूदा उपकरणों पर लागू नहीं होगा यानी, वे उपकरण जो 2024 से पहले बाजार में उपलब्ध हैं, वे पुराने चार्जर के साथ ही बेचे जा सकेंगे. बहुत सारी कंपनियां इस प्रस्ताव को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं रही हैं.

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जब सितंबर 2021 में यह प्रस्ताव लाया गया था तो एप्पल ने कहा था कि ऐसे सख्त नियम रचनात्मक विकास को प्रभावित करते हैं. एप्पल ने तब बीबीसी को कहा था, "एक ही तरह का कनेक्टर लगाने की सख्ती इनोवेशन को बढ़ावा नहीं देती बल्कि उसके रास्ते में रोड़े अटकाती है. अंततः यूरोप में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यह उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदायक होता है."

एप्पल के साथ यह समस्या ज्यादा है क्योंकि बड़े उत्पादकों में एप्पल ही है जो अपने उपकरणों के लिए अलग तरह के पोर्ट इस्तेमाल करती है. अक्सर ये उपकरण एप्पल के बनाए चार्जर द्वारा ही चार्ज हो पाते हैं. अपने आईफोन सीरीज के लिए एप्पल ने लाइटनिंग कनेक्टर का प्रयोग किया है, जो एप्पल द्वारा ही बनाया जाता है.

उपभोक्ताओं की खातिर

यूरोपीय संघ के नए नियम के तहत जिन उपकरणों में बदलाव करने होंगे, उनमें मोबाइल फोन, टैबलेट, हेडफोन और हेडसेट, वीडियोगेम कंसोल और पोर्टेबल स्पीकर आदि शामिल हैं. अब इनमें से किसी भी डिवाइस के लिए केबल चार्जर का पोर्ट यूएसबी टाइप-सी ही हो सकता है और ऐसा करना डिवाइस बनाने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी होगी.

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नए नियम लैपटॉप पर भी लागू होंगे लेकिन उनके लिए उत्पादकों को नियम लागू होने के बाद 40 महीने का समय दिया जाएगा. समझौते में यह प्रावधान भी रखा गया है कि इस बात का फैसला खरीददारों पर छोड़ा जाए कि वे चार्जिंग केबल चाहते हैं या नहीं.

अपने बयान में यूरोपीय संघ ने कहा, "यह कानून ईयू की उन कोशिशों का ही एक हिस्सा है जिनके तहत यूरोपीय संघ में उत्पादों को ज्यादा सस्टेनेबल बनाया जा रहा है ताकि इलेक्ट्रॉनिक कचरा कम किया जाए और उपभोक्ताओं की जिंदगी आसान बनाई जा सके."

घटेगा ई-वेस्ट

संघ का कहना है कि इन नए नियमों से उपभोक्ताओं को नए चार्जर पर गैरजरूरी खर्च नहीं करना होगा और उन्हें 250 मिलियन यूरो यानी लगभग दो अरब रुपये सालाना की बचत होगी. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरे में भी सालाना 11,000 टन की कमी आएगी.

स्वीडन के कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग संगठन एवफॉल स्वेरिज ने हिसाब लगाया है कि एक स्मार्टफोन को बनाने में करीब 86 किलो और एक लैपटॉप को बनाने में लगभग 1,200 किलो अदृश्य कचरा निकलता है. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ता हुआ कचरा स्रोत माना गया है. कड़े निर्देशों और कानूनों के अभाव में आज अधिकतर ई-वेस्ट सामान्य कचरा प्रवाह का हिस्सा बन जाता है. यहां तक विकसित देशों के रिसाइकिल होने वाले ई-कचरे का 80 प्रतिशत हिस्सा विकासशील देशों में जाता है.

रिपोर्टः विवेक कुमार (डीपीए)

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