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समाज

जब इलाज आधुनिक चिकित्सा से तो सवाल क्यों

आमिर अंसारी
२४ मई २०२१

भारत में लोग कोरोना काल में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेद, यूनानी, और होमियोपैथी चिकित्सा पद्धतियों का सहारा ले रहे हैं. इनसे शरीर में इम्युनिटी तो बढ़ाई जा सकती है लेकिन कोरोना का इलाज नहीं हो सकता है.

Symbolfoto I Belgien - die Corona-Apotheke der EU
तस्वीर: Bernd Wüstneck/dpa/picture alliance

भारत सरकार ने कोरोना वायरस की पहली लहर के दौरान ही पिछले साल आयुर्वेदिक तरीके से इम्युनिटी बढ़ाने की सलाह जारी की थी. आयुर्वेद के अलावा यूनानी और होमियोपैथी में भी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उपाय बताए गए हैं. आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सक कहते हैं कि जब उनके पास कोई ऐसिम्प्टोमैटिक मरीज आता है तो वे अपनी पद्धति में बताए गए तरीकों से मरीजों को ठीक करने और वायरस से लड़ने के लिए शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए दवाएं और काढ़ा लेने की सलाह देते हैं.

अखिल भारतीय यूनानी तिब्बी कांग्रेस के महासचिव डॉ. सैयद अहमद खान कहते हैं, "कुछ चीजें ऐसी हैं जो हम जुबानी तौर पर बता देते हैं और कुछ चीजें बाजार में तैयार तौर पर मिलती हैं, जिसका इस्तेमाल लोग घर पर आसानी से कर सकते हैं. जैसे कि सर्दी, जुकाम और बुखार के लिए हम जोशांदा लेने की सलाह देते हैं."

भारत में आयुर्वेद सैकड़ों सालों से इलाज की पद्धति के रूप में जाना जाता है. आयुर्वेद चिकित्सक कहते हैं कि जब गांवों में एलोपैथी से इलाज की पद्धति नहीं थी तब लोग आयुर्वेद से ही उपचार करा कर स्वस्थ होते थे. इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (आयुष) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरपी पाराशर दावा करते हैं कोरोना का इलाज भी आयुर्वेद में मुमकिन है लेकिन वे सरकार के आदेश से बंधे हुए हैं. पाराशर कहते हैं कि एलोपैथी के डॉक्टर भी पहले तो मरीज को दवा देकर घर पर ही इलाज शुरू करने को कहते हैं.

अपने अपने दावे

वे कहते हैं, "हमारे पास अगर कोई ऐसिम्प्टोमैटिक मरीज आता है तो हम उनका इलाज कर सकते हैं लेकिन अगर कोरोना पॉजिटिव मरीज आता है तो हम उसको मजबूरी में अस्पताल भेजेंगे. ऐसिम्प्टोमैटिक मामले में हम अपनी दवा शुरू कर सकते हैं." लेकिन पाराशर कहते हैं कि अगर ऐसिम्प्टोमैटिक मरीज की तबीयत बिगड़ती है तो वे उसे अस्पताल के लिए रेफर कर देंगे. आधुनिक चिकित्सा पर काम करने वाले डॉक्टर कहते हैं कि आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में क्या दावे किए जाते हैं उनसे उनका लेना देना नहीं है.

वे कहते हैं कि जब मरीज की हालत खराब होती है तो वह एलोपैथी के डॉक्टर के पास ही आता है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा कहते हैं, "आधुनिक चिकित्सा नियंत्रित और अनुसंधान आधारित है." वे कहते हैं कि इस पर लोग भरोसा करते हैं. भारत में आयुष मंत्रालय 2014 में बनाया गया था और इसके अंतर्गत आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी विभाग आता है.

एलोपैथी बनाम आयुर्वेद

आधुनिक चिकित्सकों का कहना है कि देश में कोरोना काल के कारण उनके 700 से अधिक साथियों और सैकड़ों अंग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मचारी ने देश की सेवा में जान दे दी और वे ही इस महामारी में सबसे आगे रहकर मरीजों को राहत पहुंचा रहे हैं. वहीं आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि आधुनिक चिकित्सक उन्हें "झोला छाप" कहते हैं और यह अपमानजनक है. वे कहते हैं कि भारत की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति दुनिया की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है.

इस बहस के बीच बीते दिनों रामदेव ने एलोपैथी को "स्टुपिड और दिवालिया साइंस" कहा था, जिस पर आईएमए समेत देश के कई संस्थाओं ने रामदेव के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी. आईएमए ने रामदेव के खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने की भी मांग की थी. डॉ. सैयद अहमद खान भी मानते हैं कि रामदेव ने गलत बयानी की और उन्हें ऐसा कहने का कोई अधिकार नहीं है. उनके मुताबिक रामदेव योग सिखाने के माहिर हैं और उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र का ज्ञान नहीं है.

रामदेव पहले भी दे चुके हैं विवादित बयानतस्वीर: Getty Images/AFP/Narinder Naru

आईएमए ने कहा था कि रामदेव  ने 'गैरजिम्मेदाराना' बयान दिए और वैज्ञानिक दवा की छवि बिगाड़ी. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के हस्तक्षेप के बाद रामदेव ने एलोपैथी को लेकर दिया बयान वापस ले लिया. एलोपैथी चिकित्सा पद्धति को "स्टुपिड और दिवालिया" बताए जाने पर चिकित्सक संगठनों ने गहरी नाराजगी जाहिर की थी, जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने उनसे बयान वापस लेने को कहा था. स्वास्थ्य मंत्री ने रामदेव की सफाई को भी स्वीकार नहीं किया था.

आखिरकार रामदेव ने रविवार को स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर बयान वापस लेने की बात कही. दरअसल, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने रामदेव को पत्र लिखकर कहा था, "एलोपैथिक दवाओं व डॉक्टरों पर आपकी टिप्पणी से देशवासी बेहद आहत हैं. आपके वक्तव्य ने कोरोना योद्धाओं का निरादर किया. आपने कोरोना इलाज में एलोपैथी चिकित्सा को तमाशा, बेकार और दिवालिया बताना दुर्भाग्यपूर्ण है. आपके स्पष्टीकरण को मैं पर्याप्त नहीं मानता. आप अपना आपत्तिजनक बयान वापस लें."

इस पत्र का जवाब देते हुए रामदेव ने कहा, "हर्षवर्धन जी आपका पत्र प्राप्त हुआ, उसके संदर्भ में चिकित्सा पद्धतियों के संघर्ष के इस पूरे विवाद को खेदपूर्वक विराम देते हुए मैं अपना वक्तव्य वापिस लेता हूं और यह पत्र आपको संप्रेषित कर रहा हूं- हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और एलोपैथी के विरोधी नहीं हैं. मैंने व्हाट्सऐप मैसेज को पढ़कर सुनाया था. उससे अगर किसी की भावनाएं आहत हुईं हैं तो मुझे खेद है. कोरोनना काल में भी एलोपैथी के डॉक्टर्स ने अपनी जान जोखिम में डालकर करोड़ों लोगों की जान बचाई है, इसका भी सम्मान होना चाहिए." 

वहीं रामदेव के खिलाफ दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने एक शिकायत भी दर्ज कराई है. आईएमए रामदेव को कानूनी नोटिस भेजने की तैयारी कर रहा है. रामदेव पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं. इससे पहले उन्होंने ऑक्सीजन संकट पर बयान दिया था कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है और ब्रह्मांड में ऑक्सीजन ही ऑक्सीजन है और मरीज उसे ले नहीं पा रहे हैं. कोरोना काल के दौरान रामदेव ने कोविड-19 की दवा तैयार करने का दावा किया लेकिन दवा को लेकर किए दावों के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.

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