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क्या वाकई में गुवाहाटी है दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर?

साहिबा खान
१९ अप्रैल २०२४

एक रिपोर्ट में गुवाहाटी को दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है. तेज शहरीकरण, गाड़ियों की बढ़ती संख्या जैसे कई कारण इसके जिम्मेदार हैं. हालांकि कई लोग नहीं मानते कि गुवाहाटी की हवा इतनी खराब है.

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असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन अरूप मिश्रा ने बताया कि ऐसी रिपोर्टों से पर्यटन पर खासा असर पड़ता है.तस्वीर: Biju Boro/AFP/Getty Images

असम के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ. अरूप कुमार मिश्रा का कहना है,"हम सस्ते और निचले दर्जे के सेंसर इस्तेमाल नहीं करते हैं, जो हमें गलत जानकारी दें.” मिश्रा ने स्विस एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग ग्रुप की हालिया रिपोर्ट को गलत बताते हुए यह बात कही. इस रिपोर्ट में गुवाहाटी को सबसे प्रदूषित हवा वाले शहरों की श्रेणी में दूसरे नंबर पर रखा गया है.

2023 वर्ल्ड एयर क्वालिटी नाम की इस रिपोर्ट में बिहार का बेगूसराय सबसे ऊपर है, वहीं दिल्ली तीसरे स्थान पर है. देशों की सूची में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद भारत तीसरे स्थान पर है.

रिपोर्ट के अनुसार, गुवाहाटी की हवा में पीएम  (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 प्रदूषक का घनत्व 105.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. रिपोर्ट के मुताबिक निर्धारित सीमा से यह 20 गुना ज्यादा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है.

भारत का अपना मानक 40 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर है. पीएम 2.5 ऐसा प्रदूषक है जो इंसान के बाल से 30 गुना ज्यादा बारीक होता है. अगर यह खून में प्रवेश करता है, तो स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं  हो सकती हैं.

रिपोर्ट पर विवाद

अरूप कुमार मिश्रा ने इस रिपोर्ट को बेबुनियाद ठहराया है. डीडब्ल्यू से बातचीत में कुमार ने कहा कि राज्य सरकार इस रिपोर्ट से सहमत नहीं है. मिश्रा का कहना है,"हमारी सभी गाइडलाइन अमेरिका की एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी से मेल खाती हैं, और हम उन सभी का पालन करते हैं.”

हालांकि नई दिल्ली की सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक, अनुमिता रॉयचौधुरी कहती हैं कि बात केवल यह नहीं है कि गुवाहाटी सबसे प्रदूषित शहरों में दूसरे स्थान पर है. उनका कहना है, "मसला यह है कि गुवाहाटी में कुछ सालों के अंदर बहुत ज्यादा प्रदूषण बढ़ा है जिसके जिम्मेदार तीव्र शहरीकरण और गाड़ियों का बढ़ना है.”

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हालांकि रिपोर्ट के गुणा भाग पर उनके भी सवाल है. उनका कहना है,"गुवाहाटी से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर बर्नीहाट शहर है जो मेघालय और असम की सीमा पर पड़ता है. अगर गुवाहाटी का प्रदूषण नापते हुए बर्नीहाट का प्रदूषण भी उसमें आंका गया है, तब नंबर के हिसाब से गुवाहाटी का औसतन प्रदूषण बढ़ा हुआ दिखाई देने की ज्यादा संभावना है. यह भी पक्का नहीं है कि क्या उन्होंने सरकारी आंकड़ों को देख कर यह रिपोर्ट तैयार की है.”

गुवाहाटी उत्तर-पूर्व का सबसे बड़ा व्यापार अड्डा

अरूप मिश्रा ने बताया कि यह बात सच है कि 2022 के दिसंबर महीने में गुवाहाटी में भयंकर प्रदूषण था. वे कहते हैं, "2022 में गुवाहाटी में निर्माण कार्य चरम पर था, कई हाईवे बन रहे थे और ब्रह्मपुत्र नदी से भी काफी धूल शहर में आ रही थी. हालांकि 2023 तक बड़े निर्माण कार्य खत्म हो चुके थे. इसलिए गुवाहाटी 2023 में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में दूसरे स्थान पर नहीं आ सकता है.”

मिश्रा का कहना है कि गुवाहाटी उत्तर पूर्व में सबसे बड़ा व्यापार केंद्र है और हाल के दिनों में यहां बड़े निर्माण कार्यों ने जोर पकड़ लिया है. रिपोर्ट में किस तरह से गणना हुई है यह अभी सामने नहीं आ पाया है. मिश्रा ने कहा, "ना ही असम सरकार को इस रिपोर्ट से जुड़े किसी व्यक्ति ने संपर्क किया, ना ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को. ना ही हमें ये पता है कि क्या उन्होंने अच्छे सेंसर इस्तेमाल किए हैं.”

नई दिल्ली में भलस्वा लैंडफिल साइट पर जलते हुए कूड़े से निकलने वाला धुंआ.तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS

मिश्रा कहते हैं, "आस-पास के राज्य अपना कचरा जलाते हैं और उस धुएं का खामियाजा गुवाहाटी को भुगतना पड़ता है.” ऐसे ही कई दावे सर्दियों की वायु प्रदूषण में दिल्ली सरकार भी करती है. हालांकि रॉयचौधुरी का इस पर कहना है, "यह सच है कि एक जगह का प्रदूषण दूसरी जगह पर असर डालता है, लेकिन दूसरे शहर की वजह से हमारे शहर में प्रदूषण होता है, यह कहना गलत होगा. अगर उनका हमारे वायु प्रदूषण में योगदान है तो हमारा भी उनकी प्रदूषण में योगदान होगा.”

रॉयचौधुरी ने बताया कि नोएडा में भी 40 फीसदी वायु प्रदूषण का जिम्मेदार दिल्ली है. उनका कहना है, "चूंकि गुवाहाटी एकदम से शहरीकरण की ओर बढ़ा है, वहां बहुत तेजी से निर्माण कार्य शुरू हुआ और इसने यहां की वायु गुणवत्ता पर काफी बुरा असर डाला.”

गाड़ियों की संख्या भी बड़ी वजह

1971 की जनगणना के अनुसार, गुवाहाटी की जनसंख्या 300,000 से कम थी.  2011 में, जब भारत ने अपनी आखिरी जनगणना की, तो यह संख्या करीब 10 लाख हो गई. रॉयचौधुरी कहती हैं, "जैसे जैसे आबादी बढ़ी वैसे-वैसे शहर में गाड़ियों की संख्या भी बढ़ गई और शहर इतनी तेजी से गाड़ियों की बढ़ती संख्या के लिए तैयार नहीं था.” एक तो गाड़ियों की बढ़ती संख्या, उस पर से पुरानी गाड़ियों का अभी तक सड़कों पर होना इस वायु प्रदूषण में आग में घी का काम करता है.

गाड़ियों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ शहर में जंगलों की कटाई भी हो रही है. 2023 में, नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने असम में गुवाहाटी और ग्वालपाड़ा के बीच एक हाईवे परियोजना के लिए लगभग 2,000 पेड़ों को काटने के आरोपों पर स्वत: संज्ञान लिया था.

नई दिल्ली में बढ़ती गाड़ी-संख्या के चलते ट्रैफिक जामतस्वीर: Altaf Qadri/AP/picture alliance

कचरा-प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे की कमी

आबादी के साथ जो एक चीज बेतहाशा बढ़ती है वो है कचरा. रॉयचौधुरी मानती हैं कि गुवाहाटी में सही ढंग से कचरा इकट्ठा ना करने से लेकर उसके ट्रीटमेंट तक में इंफ्रास्ट्रक्चर की भी कमी है. "शहर के पास ही लैंडफिल है जहां कचरा जमा होता है. जब वहां सही ढंग से कचरा नहीं डाला जाता, तब वो सड़ता रहता है. इस सड़ते हुए कचरे में जब तब आग लग जाती है और उस से वायु प्रदूषण होता है.”

एक रिपोर्ट के अनुसार पास के गांव बेलोरतोल में ही गुवाहाटी का सारा कचरा फेंका जाता है. कचरे में कुछ समय पहले आग लग गई थी जो कई हफ्तों तक जलती रही. प्लास्टिक और बाकी कचरे के जलने से निकलने वाली खतरनाक गैसों ने भी गुवाहाटी की हवा खराब की.

रॉयचौधुरी ने गुवाहाटी की भौगोलिक स्थिति के बारे में भी जिक्र किया. उन्होंने बताया, "चूंकि गुवाहाटी पर घाटी का प्रभाव पड़ता है, वहां वायु प्रदूषण की सघनता और भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि भारी हवा के बाहर निकलने के रास्ते कम हो जाते हैं.”

दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिलतस्वीर: Manira Chaudhary/DW

 

रिपोर्ट का असर

अरूप मिश्रा ने बताया कि किस तरह से ऐसी रिपोर्टों का राज्य के पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री पर असर पड़ता है. उन्होंने कहा, "बड़ी कंपनियां तो आ जाती हैं क्योंकि उन्हें यहां काम करना है, लेकिन जो सैलानी केवल कुछ दिनों के लिए गुवाहाटी आते हैं, वो ऐसी रिपोर्ट देख कर निराश हो जाते हैं और फिर नहीं आते. इससे काजीरंगा नेशनल पार्क  के पर्यटन पर खासा असर पड़ता है.”

अरूप का अंदाजा है कि विदेशी कंपनियां अपने फायदे के लिए भी ऐसी रिपोर्टें ला सकती हैं. "कई कंपनियां एयर प्यूरीफायर जैसे उपकरण बनाती हैं. ऐसा भी हो सकता है कि इन रिपोर्टों को पढ़ने के बाद कई लोग इनके बनाये हुए प्यूरीफायर खरीदें.”

सुधार मुश्किल लेकिन जरूरी है

रॉयचौधुरी को लगता है कि इस बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए नीतियों में सुधार लाना होगा. उनका कहना है, "प्रदूषण राज्य सीमाओं को नहीं समझती. अगर एक जगह प्रदूषण हो रहा है तो बगल वाले शहर तक तो वो पहुंचेगा ही. इसलिए हमें जरूरत है एक रीजनल पॉलिसी एक्शन प्रोग्राम की, जो केवल एक या दो शहरों में नहीं बल्कि उस पूरे इलाके को देखे.”

रॉयचौधुरी यह भी कहती हैं कि वाहन प्रदूषण रोकने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर जोर देना होगा. कचरे को भी ठीक ढंग से फेंकना और इकट्ठा करना होगा. जो गीला कचरा है वो कंपोस्ट हो, जो सूखा कचरा है वो रिसायकिल हो. जनता के बीच इस जागरूकता को फैलाना होगा.

मिश्रा ने भी बताया कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत सिटी एक्शन प्लान जारी है इसके तहत उन सभी स्रोतों को पहचाना जाएगा जो प्रदूषण में अहम भूमिका निभा रहे हैं और फिर उन्हें कम करने की नीति बनाई जाएगी. फिलहाल, असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के साथ कर रहा है.

 

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