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यूक्रेन युद्धः पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं पर कमर तोड़ आर्थिक बोझ

निक मार्टिन
१८ मई २०२४

यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से उसके सहयोगी देशों की सरकारें कर्ज, टैक्स वृद्धि और रक्षा खर्च के लिए बचत की मजबूरी से जूझ रही हैं. इसे जनता के सामने तार्किक बताना मुश्किल होता जा रहा है.

रिमोट चालित एक सैन्य उपकरण की सांकेतिक तस्वीर
दुनिया का सैन्य खर्च 306 डॉलर प्रति व्यक्ति है जो शीत युद्ध खत्म होने के बाद से सबसे ज्यादा हैतस्वीर: Christoph Hardt/Panama Pictures/IMAGO

अगर आप वैश्विक सुरक्षा पर छाए खतरे के संकेत समझना चाहते हैं तो बस नजर दौड़ाइए कि दुनिया भर में सरकारों ने अपना रक्षा खर्च किस कदर बढ़ा दिया है. 2023 में दुनिया का सैन्य बजट 24.4 खरब अमेरिकी डॉलर पहुंच गया. यह 2022 के मुकाबले सात फीसदी ज्यादा रहा. 2009 के बाद यह सबसे तेज सालाना उछाल था जो यूक्रेन में रूसी युद्ध के दूसरे साल में दर्ज किया गया. फिलहाल, दुनिया का सैन्य खर्च 306 डॉलर प्रति व्यक्ति है जो शीत युद्ध खत्म होने के बाद से सबसे ज्यादा है.

यूक्रेन में इतने बड़े पैमाने पर युद्ध लड़ने की क्षमता नहीं थी, लिहाजा पश्चिमी देशों ने उसे सैन्य सहायता मुहैया कराई. दूसरी तरफ, मध्य एशिया और एशिया में रूस के साथ दूसरे मसलों पर बढ़ते तनावों ने सरकारों को अपनी रक्षा क्षमताएं बढ़ाने की वजह दी. ऐसा दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार हुआ.

2024 में, अमेरिका ने 886 अरब डॉलर रक्षा बजट के लिए दिए. यह दो सालों के भीतर 8 फीसदी से ज्यादा का उछाल था. पहली बार ऐसी उम्मीद जताई गई है कि नाटो के यूरोपीय साझेदार अपनी जीडीपी का 2 फीसदी हिस्सा रक्षा पर खर्च करेंगे, जैसा यह सैन्य संगठन चाहता है. नाटो प्रमुख येंस श्टोल्टेनबर्ग ने फरवरी में कहा था कि अकेले इसी साल के लिए इन देशों ने 380 अरब डॉलर का सामूहिक रक्षा बजट निर्धारित किया है. 

जर्मनी ने यूक्रेनी सैनिकों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया हैतस्वीर: Klaus-Dietmar Gabbert/dpa/picture alliance

पोलैंड है सबसे आगे

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के दिए 100 अरब यूरो के विशेष फंड की मदद से जर्मनी अपनी सैन्य क्षमताएं बढ़ा कर अन्य नाटो सदस्यों के साथ कदम मिलाने की कोशिश में है. लेकिन पोलैंड अपनी कुल जीडीपी का 4.2 फीसदी रक्षा पर खर्च करने की तैयारी में है जो इस संगठन में किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है. नाटो के पूर्वी मोर्चे पर दूसरे सदस्य देश भी अपनी सीमाओं पर मौजूद खतरे के मद्देनजर, जीडीपी के दो फीसदी का रक्षा लक्ष्य पार कर लेंगे.

नतीजतन, सरकारों को कठिन फैसले लेने पड़ रहे हैं कि वे अतिरिक्त रक्षा खर्च का वादा कैसे निभाएं जबकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं भूराजनैतिक तनावों और मंहगाई के बोझ तले कमजोर हो रही हैं. बहुत से देश पहले ही वित्तीय दबाव झेल रहे हैं.

ब्रसेल्स स्थित एक थिंक टैंक ब्रूगल में सीनियर फेलो गुंठर वुल्फ ने डीडब्ल्यू बातचीत में कहा, "यूक्रेन के लिए अल्पकालिक तौर पर सैन्य उपकरण मुहैया कराने के लिए पैसा अतिरिक्त कर्ज से जुटाना चाहिए. पहले युद्ध के लिए पैसा ऐसे ही दिया जाता था. लेकिन लंबी अवधि के लिए रक्षा खर्च बढ़ाने का मतलब है या तो टैक्स बढ़ेंगे या सरकारी खर्च में कटौती. यह राजनीतिक रूप से कष्टकारी जरूर है लेकिन अगर इसे सरकारी विभागों में बांट दिया जाए तो यह कम दुखदायी होगा."

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जर्मनी की बजट कटौतियां

अर्थव्यवस्था की धीमी चाल के चलते जर्मनी में जहां सरकारी खजाने में कर से होने वाली आय घटने का अनुमान है, वहीं सरकार को कई विभागों के खर्च में कटौती करनी पड़ी है. यही नहीं, सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मदद के तौर पर दी जाने वाली राशि में भी करीब दो अरब यूरो की कटौती की घोषणा की है. वॉशिंगटन स्थित जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अमेरिकन जर्मन इस्टीट्यूट के प्रेजीडेंट जेफ्री राथ्के ने डीडब्ल्यू से कहा, "जर्मनी को कुछ बेहद अहम समझौते करने होंगे. इनका बंदोबस्त राजनीतिक स्तर पर करना होगा ताकि वे सुरक्षा और रक्षा के लिए जनता के समर्थन को कमजोर ना करें."

कई देशों में वामपंथी पार्टियों ने रूस और यूक्रेन के बीच शांति का नारा बुलंद किया है और इस बहस को हवा दी है कि क्या यह बेहतर नहीं होता कि नए सैन्य खर्च में जाने वाला पैसा स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के कामों में खर्च किया जाता. राथ्के इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि जर्मनी में डेट ब्रेक यानी सरकार के कर्ज उठाने पर लगी सीमाएं, बजट में घाटे को पूरा करने की सरकारी क्षमता को सीमित करती हैं. इसका मतलब है कि शॉल्त्स सरकार के पास उतनी संभावनाएं नहीं है जितनी कि फ्रांस के पास.

नाटो का रक्षा लक्ष्य और यूरोपीय देशों का संघर्ष

यूरोपीय संघ के दूसरे देश, खासकर 2011 के यूरोपीय कर्ज संकट से प्रभावित होने वाले देशों में पहले से ही बचत और कटौती जैसे कदम उठाए जा रहे हैं. इन कटौतियों में इजाफा सार्वजनिक सेवाओं पर बुरा असर डाल सकता है.

उदाहरण के लिए, इटली इस साल अपनी जीडीपी का केवल 1.46 प्रतिशत ही रक्षा पर खर्च कर पाएगा और वह चेतावनी दे चुका है कि 2028 तक भी नाटो का दो फीसदी का लक्ष्य पाना उसके लिए टेढ़ी खीर है. इस साल, इटली के सरकारी कर्ज और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 137.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है. अन्य देशों की वित्तीय हालत भी कुछ खास बेहतर नहीं है. जैसे स्पेन में भी इस साल रक्षा खर्च बढ़ाने की संभावनाएं नजर नहीं आ रही हैं जबकि पिछले साल ही उसने सैन्य बजट में 26 फीसदी का इजाफा किया था.

स्वीडन, नॉर्वे, रोमानिया और नीदरलैंड्स पर कर्ज का दबाव कम है. लेकिन नीदरलैंड्स में चार पार्टियों वाली धुर दक्षिणपंथी गठबंधन सरकार अपना वजूद बनाए रखने के लिए सरकारी घर बनाने और खेती से जुड़े मसलों पर पैसे खर्च करना चाहती है. राथ्के के मुताबिक, "वित्तीय क्षमता और कर्ज की दिक्कतों के साथ ही, संसाधनों से जुड़ी इस बहस में यह बात भी अहम है कि यूरोप में खतरे का मतलब सबके लिए अलग है." इसलिए यूक्रेनी सीमाओं के करीब बसे देशों के मुकाबले, उससे दूर स्थित देशों में रक्षा को प्राथमिकता देने में उनती रुचि नहीं है.

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